"चांदनी रात में वह" (एक सौम्य प्रेम कथा) part-1 एक विवाहित स्त्री और पुरुष के बीच के संबंध

गांव की एक छोटी-सी बस्ती में, जहाँ हर घर की छतें एक-दूसरे से जुड़ी होती थीं, वहीं एक घर में रहती थी सावित्री — सब उसे प्यार से "भाभी" कहते थे। वो अपने सौम्य स्वभाव, मीठी मुस्कान और मददगार स्वभाव के लिए पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध थी। सावित्री की उम्र तीस के करीब थी, और उसका विवाह चार साल पहले राजीव से हुआ था, जो शहर में नौकरी करता था और महीने में एक-दो बार ही घर आ पाता था। सावित्री अपने घर-आंगन, तुलसी चौरे और रसोई में खुद को व्यस्त रखती, लेकिन मन ही मन उस पल का इंतज़ार करती जब राजीव का फोन आता या वह अचानक सामने खड़ा मिल जाता।
एक दिन राजीव बिना बताए घर आ गया। सावित्री आंगन में कपड़े सुखा रही थी, जब पीछे से किसी ने धीरे से उसकी चूड़ियों को छुआ। वो चौंक कर मुड़ी तो देखा — राजीव। उसकी आँखें मुस्कुरा रही थीं। "इतने दिन बाद आए हो, और चुपचाप?" सावित्री ने शिकायती अंदाज़ में कहा। "तुम्हारे चेहरे की मुस्कान देखने का मन कर रहा था। सोचा, बिना बताए आऊं," राजीव ने मुस्कराते हुए कहा। शाम का समय था, हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। चाय के साथ दोनों छत पर आ बैठे। गांव की छतें दिन में भले ही कामकाज से भरी रहती थीं, लेकिन रात होते-होते एक अलग ही दुनिया बन जाती थीं — शांति, तारे, और आपसी बातें। राजीव ने सावित्री की तरफ देखा। "तुम पहले से भी ज्यादा सुंदर लग रही हो," उसने कहा।
सावित्री ने नज़रें झुका लीं। "तुम्हारी याद में खुद को संभालती रही हूँ, शायद उसी का असर हो।" चाँद धीरे-धीरे ऊपर आ चुका था। दोनों छत पर बैठ कर उस चमकते चाँद को देख रहे थे। राजीव ने सावित्री का हाथ थाम लिया। "याद है, जब पहली बार मिले थे, तुमने मुझे देखा तक नहीं था। अब देखो, तुम्हारी आँखें मुझे पढ़ लेती हैं।" सावित्री मुस्कराई, "प्यार वही होता है ना, जो बिना कहे भी सब समझ ले।" राजीव ने धीमे से कहा, "प्यार अब सिर्फ शब्द नहीं रह गया, ये सांसों में उतर गया है।"
रात गहराती गई। सावित्री ने थाली में खाना परोसा, हाथ से राजीव को खिलाया — जैसे एक नर्म एहसास से लिपटी हुई परंपरा। वो रात बाकी रातों से अलग थी। कोई बड़ी बात नहीं हुई, कोई नाटकीय मोड़ नहीं था — सिर्फ दो दिल, जो वक्त के बीच भी एक-दूसरे की धड़कनों में बसे हुए थे। सोने से पहले राजीव ने कहा, "तुम्हारे बिना हर चीज अधूरी लगती है। शहर में सब कुछ है, बस तुम नहीं।" सावित्री ने उसकी आंखों में देखा, "मैं तो यहीं हूँ, लेकिन मेरा मन हर रोज़ तुम्हारे पास भेज देती हूँ। अब तुम आ गए हो, तो सब पूरा लगता है।" अगली सुबह सूरज की किरणों के साथ, सावित्री की आँखें खुलीं — राजीव की बाहों में। उसने सोचा, "ये रात मुझे जीवन भर याद रहेगी। क्योंकि इसमें प्रेम था, अपनापन था, और वो गहराई थी जो शब्दों से परे है।" समाप्त। अगर आप चाहें तो मैं इस कहानी का दूसरा भाग भी लिख सकता हूँ जिसमें ये दिखाया जाए कि कैसे दोनों मिलकर ज़िंदगी के छोटे-छोटे पलों में सच्चा प्रेम खोजते हैं।

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