"चांदनी रात में वह – भाग 2: सुबह की सौगात" एक विवाहित स्त्री और पुरुष के बीच के संबंध
सुबह की रौशनी आंगन में फैल चुकी थी। मिट्टी की सौंधी खुशबू, तुलसी के पत्तों पर ओस, और रसोई से उठती ताज़ा अदरक वाली चाय की महक — ये सब उस सुबह को खास बना रहे थे। लेकिन आज की सुबह में एक और खास बात थी — राजीव का साथ।
सावित्री रसोई में थी, हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर थी। उसकी चूड़ियों की खनक राजीव के कानों तक पहुंच रही थी, जैसे कोई मधुर राग बज रहा हो। वह पास आया और धीरे से बोला,
"आज चाय मुझे बनानी है।"
सावित्री ने हँसते हुए कहा, "चाय तो बना लो, पर दूध ज्यादा मत डालना — वरना फिर वही तुम्हारा पतला पानी जैसा स्वाद!"
राजीव ने मुस्कराते हुए चाय बनाई। दोनों ने आंगन में बैठकर चाय पी। राजीव ने पूछा, "क्या तुम कभी मेरे साथ शहर चलना चाहोगी?"
सावित्री थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, "अगर तुम कहो तो चलूँगी, लेकिन मुझे ये मिट्टी, ये तुलसी चौरा, और ये छतें छोड़ना बहुत मुश्किल लगेगा।"
राजीव ने उसकी हथेली थाम ली, "जहाँ तुम हो, वहीं मेरा घर है। अगर तुम चाहो तो मैं हर महीने की जगह हर हफ्ते आने लगूं।"
दोनों की आँखों में एक वादा चमक रहा था — दूरी कम करने का, और प्रेम को हर दिन निभाने का।
दोपहर को दोनों मंदिर गए। सावित्री ने भगवान से चुपचाप एक दुआ माँगी — "इस साथ को यूँ ही सहेजे रखना, हे देवता।" राजीव ने उसकी ओर देखा, जैसे वो दुआ उसने भी सुनी हो।
शाम को, छत पर बैठकर उन्होंने पुराने एल्बम निकाले। शादी की तस्वीरें, हँसी-खुशी के पल, और कुछ भूली-बिसरी यादें — दोनों खिलखिलाकर हँसते रहे। बीच-बीच में एक-दूसरे को चुपचाप निहारते हुए।
राजीव ने कहा,
"तुम सिर्फ मेरी पत्नी नहीं, मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी हो।"
सावित्री ने जवाब दिया,
"और तुम मेरे जीवन का वो हिस्सा, जो हर दिन नया रंग भर देता है।"
रात को दोनों आंगन में चारपाई पर लेटे थे। तारों से भरा आसमान ऊपर था, और नीचे दो दिलों का एक गहरा रिश्ता। कोई शोर नहीं, बस दिलों की धड़कनें और हल्की हवा।
राजीव ने धीमे से कहा,
"काश! ये रात कभी खत्म न हो।"
सावित्री ने उसका हाथ पकड़कर बोला,
"रातें तो आएंगी-जाएंगी, पर हमारा साथ — वो कभी नहीं जाएगा।"
उस रात उन्होंने कोई वादा नहीं किया, कोई कसमें नहीं खाईं। सिर्फ एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस किया, उस प्रेम को जिया जो शब्दों से परे था।
समाप्त।
अगर आप चाहें, तो मैं इन पात्रों की ज़िंदगी पर आधारित एक संपूर्ण उपन्यास की तरह और अध्याय भी लिख सकता हूँ — जैसे कि सावित्री का शहर जाना, उनके जीवन में आने वाली नई चुनौतियाँ, या कोई और भावनात्मक मोड़।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इस कहानी को आगे बढ़ाऊं?
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